दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम् |
मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम् || 38||
दण्ड:-दण्ड; दमयताम्-अराजकता को रोकने वाले साधनों में; अस्मि-हूँ; नीतिः-सदाचार; अस्मि-हूँ; जिगीषताम्-विजय की इच्छा रखने वालों में; मौनम्-मौन; च-और; एव-भी; अस्मि-हूँ; गुह्यानाम्-रहस्यों में ज्ञानम्-ज्ञान; ज्ञान-वताम्-ज्ञानियों में; अहम्-मैं हूँ।
BG 10.38: मैं अराजकता को रोकने वाले साधनों के बीच न्यायोचित दण्ड और विजय की आकांक्षा रखने वालों में उनकी उपयुक्त नीति हूँ। रहस्यों में मौन और बुद्धिमानों में उनका विवेक हूँ।
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मानव जाति की ऐसी प्रवृत्ति है कि लोगों के भीतर सदाचरण विकसित करने के लिए केवल उपदेश देना ही पर्याप्त नहीं होता। न्यायोचित ढंग से जब समय पर दण्ड दिया जाता है तब यह लोगों के पापमय आचरण में सुधार लाने और उन्हें सदाचरण पर चलने का प्रशिक्षण देने का महत्त्वपूर्ण उपकरण सिद्ध होता है। आधुनिक प्रबंधन सिद्धान्तों में अत्यंत कुशलता से वर्णन किया गया है कि दुराचार के लिए एक मिनट का दण्ड और सदाचार के लिए एक मिनट के उपयुक्त प्रोत्साहन से मनुष्यों के दुर्व्यवहार को रोका जा सकता है। विजय की अभिलाषा सार्वभौमिक है लेकिन जो उच्च चरित्रवान हैं वे नीति और सिद्धान्तों को त्याग कर अधर्म के मार्ग का अनुसरण कर विजय प्राप्त नहीं करना चाहते। ऐसी विजय जो धर्म के मार्ग का अनुसरण कर प्राप्त की जाती है वह भगवान की शक्ति का गौरव है। रहस्य वह है जिसे किसी विशिष्ट उद्देश्य से सामान्य जन से गुप्त रखा जाता है। कहा जाता है-"रहस्य एक व्यक्ति की जानकारी में ही रहस्य है। दो व्यक्ति की जानकारी में वह रहस्य गोपनीय नहीं रहता और तीन लोगों के बीच जानकारी होने का अर्थ है कि वह समूचे संसार में समाचार बन कर फैल चुका है।" इस प्रकार से सर्वोत्कृष्ट रहस्य वह है जो मौन में छिपा रहता है।
सच्चा ज्ञान मनुष्य में आध्यात्मिक ज्ञान की परिपक्वता और आत्मबोध या भगवद्ज्ञान द्वारा आता है। इसमें संपन्न मनुष्य सभी घटनाओं, मनुष्यों, और पदार्थों को भगवान के साथ संबंधित देखता है। ऐसा ज्ञान मनुष्य को परिशुद्ध, पूर्ण, तृप्त और उन्नत बनाता है। यह जीवन को दिशा देता है तथा अन्याय और परिवर्तन का सामना करने की शक्ति और मृत्यु तक क्रियाशील रहने की दृढ़ता प्रदान करता है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि वे ऐसा ज्ञान हैं जो बुद्धिमानों में प्रकट होता है।